बासी आऊ वोकर महत्व
बासी ह हमर छत्तीसगढ के परमुख आहार हे। एमा अब्बड पोसक तत्व होथे।
"ठंडा मतलब बोरे बासी"
बासी ह छत्तीसगढ़िया मनखे के जिनगी म जुन्ना समे ले पोसक आहार के रुप म खाए जावत हे। फेर , आजकाल आनी बानी के डिब्बा बंद खाए के जिनिस आऊ नाश्ता मिल जथे, जेखर सेती अब ईहा के मनखे मन बासी खाए बर रुचि नई देखाए। जबकि एहा नाश्ता या डिब्बा बंद खाना ले जल्दी पचईया आऊ पोसक आहार आय। आज बासी खावइया मनखे ल देख के लोगन मन वोला देहाती कहि देथे। फेर, वो देहाती नोहय देहतीपन तो आईसन सोचइया कहाईया के सोच बिचार म हे।
बासी खाए के तरीका
एक बने मनखे ह बासी ल हर मौसम म खा सकत हे , फेर जूर खासी आऊ जाड़, बरसात के दीन म बासी खाए ल परहेज करें बर चाही। हा गरमी के दीन म बासी खवाई सबसे अच्छा आहर माने गेहे। एमा आमा चटनी गोंदली, पाताल के फटका कच्चा मिर्चा के चट्नी, नुंचूरा आऊ भांजी जाईसे चेंच भाजी, बर्रे, बोहार भाजी के संग खाए के मज़
हे ।
ये संसार म भुईया के भगवान के पूजा अगर होथे त वो देस हावय भारत। जिहा भूईया ल महतारी आऊ किसान ल वोकर लाइका कहें जाथे। ये संसार म अन्न के पूर्ति करईया अन्न दाता किसान हे। हमर छत्तीसगढ ल धान के कटोरा कहे जाथे। आऊ ई हा के किसान आऊ का मइया मनखेमन के परमूख आहार भात आवाय।
छत्तीसगढ़ी भाषा म बासी एक भात के बने खाए के बियंजन आय। फेर, हिंदी भाखा म बासी बाचे जुन्ना खाए के जीनिस ल कहे जाथे। फेर बासी रतिया के भात ल पानी म बोरे जिनीस आय। जेला बिहिनिया या मंझानिया तक खाए जा सकत हे।।
बासी बनाए के विधि -
बासी बनाए के विधि बड़ आसान हे। रतिहा के बने भात ल बिहीनिया बुता काम म जाय के पहिली खाए बर एला बनाए जाथे । रात के खाना खाके माईलोगन मन रतिहा जेन हड़िया म भात ल बनाए रहिथे वोमा पानी डार देथे। बिहिनिया बुता काम म जाए के पाहिली वो रतिहा के भात जेला पानी म भिगोए रईथे वो मा नून के संग पाताल चटनी संग चट ले खाए जाथे।।
बोरे आऊ बासी म फरक होथे
बोरे आऊ बासी म फरक होथे। बोरे ह भात बने के बाद तुरते पानी म डार के खाए जाथे आऊ बासी ह रतीह
के भात ल रातभर पानी म भिगो के बिहनिया खाए जथे।
कहावत म बासी।
बासी के नून नई हटय , कहे के मतलब ये हावय के एक बार मान चल देथे त दुबारा नई मिले। ये परकाल ले देखे जाए त बासी ह हमर छत्तीसगढ संस्कृरीति , सभ्यता आऊ परंपरा म जुन्ना समे के एक परमुख़ खाए के बियजन
हरे जेखर ले हमर देह ल पोषक जिनिस मिलथे
आऊ किसान ल बीमारी ले बचाथे।
जेला हमर छत्तीसगढ़िया मन खाके अघा थान जी ।
बासी के बारे मे गाना है ।
छत्तीसगढ़िया लोकगीत ददरिया म बासी: बटकी म बासी, आऊ चुटकी म नून, मय गावत थव ददरीय, ते कान देखें सुन वो चना के दार, हे बागे बगीचा दिखे ल हरियर , मोटरवाला नई दिखे, बदे हव नरियर, हाय चना के दार, ।।।
ये गाना सुने बर यूट्यूब म सर्च करें : बटकी म बासी, आऊ चुटकी म नून,।
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