लाइका मन ला दुसर के काही जीनिश, खाई- खजानी ल देक के लालच आ जाथे।। कभू काभू बड़े मन घालोक लालच मा चोरी- हारी कर डरथे।
तब ए मन ला थाना, पुलिस, कोरट- कछेरी नई लेग के गांव में बाइथक करके समझाना- बूझाना बने होते।।
ए कहनी म सोन के फर चोरी कर इया मनखे मन ल एईसने ढंग ले सुधारे के उड़ीम करें गिश तेन ला बताए गे हे।।
कहानी जो नीचे लिखें है ध्यान से पढू।।।।।
गजब दिन के बात आय। एक ठन गाव रहिस। ईहा के आदमी मन खेती - किसानी के बुता करत । जेकर खेत खार नई रहय , ओमन छेरी पठरू आउ गाय गरुवा राखे रहय। ऊहि मन ला चरावाय।।
एही गांव म प्रेम नाम के मनखे रहीश। ओकर खेती खार नई राहय त ओहा छेरी पठरू राखे राहाय ।ओहा दिन भर जंगल झाड़ी म जाके छेरी चारावय सांझ होए ले गांव लहूट जाए। छेरी पठरू
मन हरियर हरियर पाना पत उवा खाके में छरावत। लहुटय।।
मन हरियर हरियर पाना पत उवा खाके में छरावत। लहुटय।।
1 दिन की बात आए प्रेम हां छेरी पठरू ला लेके जंगल मा दुरिहा निकल गे । जेठ के महीना रहय । आगी के आच कस घाम घाम म फुदकी ह कुधरा कस तिपगे राहत । तीर तखार म पानी के बुंद न ई र हाय , प्रेम पियाश के मारे तरमर गे फेर का करय? थक के रुख तरी के छ ईहा तरी बईठगे।। छेरी पठरू मन उही मेर बगर के चरत रहाए।।
थोरिक बाद म शंकर भगवान ह उहि मेरा आईस।। ओहा प्रेम ला पियास के मारे तालाबेली करत देखिस। ओहा साधु के भेस बनाईस।। हाथ म पानी भरे कमंडल धरे ओ कर तीर म जाके पुछीस "" कस जी प्रेम तैहा काबर ता लाबेली देत हस""?
ओहा कहीस _ "का बताव व महराज, पीयास के मारे मोर जीव छूटत हे।"
शंकर भगवान लादया आगीस । ओहा कमंडल के पानी ला प्रेम तीर मढ़ा दिस आऊ एक पसर फर ओला दिस। ओ हा कहिस ,""खाय के पुरती ला खा ले। बाचही तेन ला घर के पठेरा म मढ़ा देबे।""
प्रेम हा चार ठन फर ला खाईस। गटर गटर पानी पीईस। बाचिस तेन ला फर ला पंछा के छोर म बांध के धर लीस।।
सोन के फर।
दिन भर थके मांदे प्रेम ह सांझ कून घर लहु टीस । अपन गूसाईन पूनिया संग गूठिया ईस बताईस । बाचे फर ला रंधनी के पठेरा म कलेचूप म ढा दिस।।
खटिया म परचेट होकर नींद परगे । कुकरा बासत ओकर
नींद खुलीस । हाथ मुंह धोक रांधनी म गिस। पठेरा ला देखिस।प्रेम अक़ चका गे । ओ फर हा सोन के होगे राहय
प्रेम ओला कलेचप धर दिस आऊ छेरी मन ल ढील के जंगल डहर चल दिस।।
प्रेम मने मन म गद गदगद होवत राहत। फेर संसो घालो क करय सोन के फर ल का करव।। दिनभर ह बीत गए। रात भर ओला नींद न ई आईस दूसर दिन शहर जाके बेचे बर सोचिस।। ओहा बड़े फजर उठ गीस। पुनिया ला छेरी ल चराय बर भेज दिश ।।
लकड़ धाकड़ रेग के प्रेम ह शहर गीश । सोनार मेर जाके सोन के फर ला देखाईस। चमचमवत सोनहा फ र ल देख के सोनार के लार टपके लगिस। ओ हा पूछीस""येला तऊलाव""
प्रेम काहीस "हा भइया । येला झटकन तऊल आऊ
मोला पईसा दे।"" सोनार झट ले फर ला तराजू म तऊलिस आऊ रूपीया के गड्डी ओला दे दिस।।
घर जाके प्रेम हा पुनिया ल सबे बात ला बता दिस दुनो सुनता करके नवा घर बानवाईस ।। भड़वा बरतन नवा नवा बिसा लिन।। पुनिया के तन भर जेवर ल देख के पारा परोस के मन म अक् चका जाय। जेने देखय तेने पुछाय"कहा ले अतेक पैसा पायेव?"
दोनों झन सिधवा रहिन। सबो झन ल सही बात ल बता दिन के ऊखर घर म सोन के फर हे। ओला बेच के पाईसा भजा लेथन। गांव भरके मनखे ए बात ल जान डरिन ।
एक दिन के बाद आय । चार झन चोरहा मनखे मन प्रेम घर आईंन आऊ पुछिन_चल तो देखा कहा हे सोन के फर?""
प्रेम ह भल ल भल जानिस। ओहा चारो झन ल रंधनि घर म लेगिस आऊ पठेरा म माढ़े फर ल देख दिस। चमचम आवत सोन के फर ल देखीं न त चोर मन के मन मा लालच आगे, ओमन कलेचूप ओकर घर ले निकलगे।
अधरतिया चोर मन प्रेम घर फर के चोरी करे बर खुसरिन। खटर _पटर आरो पा के पुनिया के नींद उमचगे। ओहा प्रेम ल उठाईस। प्रेम ह चोर मन ल चीन डारिस। ओमन सोन के फर ल धरीन आऊ भागते भगीन।
दूसर दिन प्रेम गांव म बइठक कराईस। सोन के फर पाय के आऊ चोरी होय के बात ल सफी सफा पंच मन ल बताइस । संग म पुनिया घलोक रहीस, चोर मन ल बैठक म बलाईस। ओमन फर ल धर के आइन । पंच ह चोर मन ल लतेड के पुच्छिस कस जी प्रेम कहत हे तेन बात ह सिरतोंन ए? चोर मन सकपकागे , ओमन चोरी करे के स बो बात ल बता दिन। पंच मन फर ल मागिंन।।
चोर मन फर ल लान के दिन त सब देखीं न के फर मन ह कच्चा होगेरहाय।।
कच्चा फर ल पंच मन प्रेम ल फेर दे दिन । ओहा रंधनि घर के पठेरा म फर ल मढ़ा दिस। फर सोन के होगे । चारो चोर मन ल पंच मन फ़टकारिंन।।
"" पछिना के कमई ले मनखे ल सुख मिलथे। चोरी ठगी ले काम कभू नई बनय । चोर मन कभु महल नई बना पावय ।।। ""
ये कहानी कईसे लागिस तेन ला कमेंट मा बतावव
Hii
जवाब देंहटाएंHello
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