श्रम की आरती छत्तीसगढ़ी कविता छत्तीसगढ़िया भाखा के कविता संग्रह ।।
काबर डरराबोंन, कोनो ला, जब असल पसीना गारत हन
हम नवा सुरुज पर घाए बर, श्रम के आरती उतारत हन।
चाहे कोनो हासे थूके , रद्ददा के काटा चतवारत हन।
कल आऊ कारखाना जतका, मिल मा पोंगा बाजत हावय।।
रोज कहत हे हाक पार के, जांगर वाला जागत हावय।।
दुनिया के सुख बर दुख सहीके, पथरा ले तेल निकारत हन।
हम नवा सुरुज परघाए बर श्रम के आरती उतारत हन।।
सोना कस तन, बुता के धुन मा, माटी कस करीया जाथे
नांगर जब गाडथे, भुइया के कोरा हासत हरिया जाथे।।
सुस्ता के अमरित कुंड आज हम, गजब जतन ले झारत हन।
हम नवा सुरुज परघाए बर, श्रम के आरती उतारन हन।।
नई थकीस कभू चंदा सुरुज, दिन रात रथे आगू पाछु।।
जम्मो मनखे बर एक नीत,सुनता मसाल हम बारत हन।
हम नवा सुरुज पर घाए बर, श्रम के आरती उतारत हन।।
हमन मिहनत करइया मनखे अन। हमला कोनो ले
डर राय के बात नईहे। हमन ये पाय के मिहनत
करथन ताकि संसार ल सुख मिलय। ये कविता म छत्तीसगढ़िया मन के ऐही भाव ल बताएं के परयास करे हन।।।
🙏🙏🙏 बहुत-बहुत धन्यवाद🙏🙏🙏
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जवाब देंहटाएंHello
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